🔆 ब्रह्म
🔸बृह् या बृहि से व्युत्पन्न ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है- बृहणशील,विस्तृत या विशाल।
✔बृहत्त्वाद् बृंहणत्वाच्च तस्माद् ब्रह्मेति शाब्दितः।
🔸यह स्वयं वर्धनशील तत्त्व है और इसने "एकोSहं बहु स्याम्" की भावना से लोकों का वर्धन किया है।
🔸 यह अणु से भी सूक्ष्म और महतत्त्व से बड़ा है-
✔ अणोरणीयान् महतो महीयान्
🔸सूक्ष्म शरीरों का समष्टि रूप होने से इसे हिरण्यगर्भ और सूत्रात्मा भी कहा गया है।
✅ यद्यपि वैदिक साहित्य में मन्त्र,वाक्,यज्ञ,गायत्री,प्रणव,स्तुति आदि अनेक अर्थों में इसका प्रयोग यत्र-तत्र हुआ है, किन्तु बाद में इसका अर्थ सर्वव्यापी सत्ता में सिमित हो गया, जो निराकार,विशुद्ध सच्चिदानन्दरूप,जगदाधार,निर्विकार,अनश्वर,अपरिमेय,त्रिगुणातीत और देशकालातीत है।
🔸 अनादि और अनंत होने से यह अपरिभाषित है,मात्र अनुभूतिगम्य है।
🔸समस्त ब्रह्माण्ड में सर्वज्ञ और सर्वान्तर्यामी मात्र यही है-
✔ यः सर्वज्ञ: सर्वविद् यस्य ज्ञानमयं तपः
🔸इस ब्रह्म की सिद्धि के लिए शब्द प्रमाण ही सर्वोपरि है, प्रत्यक्षानुमानादि-
✔ तस्मात् सिद्धम् ब्रह्मणः शास्त्रप्रमाणकत्वात्
🔸यह आत्मैक्य के कारण स्वयं सिद्ध है-
✔ सर्वस्यात्मभावात् ब्रह्मास्तित्त्वसिद्धि:
🔸शंकराचार्य ने ब्रह्म के स्वरूपलक्षण और तटस्थ लक्षण अथवा निर्विशेष और सविशेष दो भाव निर्दिष्ट किये है-
1⃣ तत्र स्वरूपमेव लक्षणं स्वरूपलक्षणं यत्सत्यादिकं ब्रह्म
2⃣ तटस्थलक्षणं तु यावल्लक्ष्यकालमनवस्थितत्त्वे सति तद्व्यावर्तकम तदेव
🔸इसी आधार पर ब्रह्म के निर्गुण और सगुण रूपों की चर्चा हुई। दोनों के पुष्टिकारक वचन उपनिषदों में है-
1⃣ अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथारसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तम् महत: परं ध्रुवं..।।
-कठ 3/15
2⃣ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो
विश्वतो बाहुरत विश्वतस्पात्।।
- श्वेता. 3/3
🔸 ब्रह्म के स्वरुप का बोध 'अयमात्मा ब्रह्म', 'सत्यं ज्ञानमनन्तम् ब्रह्म','विज्ञानमानन्दम् ब्रह्म' आदि श्रुतिवचनों से होता है।
🔸 शंकराचार्य ब्रह्म के स्वरुप का विवेचन करते हुए लिखते है-
✔ अतः परं ब्रह्म सदद्वितीयं विशुद्धविज्ञानघनं निरंजनम्।
प्रशांतमाद्यन्तविहीनमक्रियं निरंतरानन्दरसं स्वरूपम्।।
✅ वस्तुतः एक मात्र सत्य ब्रह्म ही है। जो विभूषित जगत और विषयी जीव दोनों ही रूपों में प्रतिभासित होता है। जगत ब्रह्म का प्रतिभासित होने वाला विवर्त है और जीव उस भ्रान्तिमय जगत की अंगभूत उपाधियों से विशिष्ट होकर प्रतिभासित होने वाला, स्वयं ब्रह्म ही है।
शुभ संध्या
मकरध्वज तिवारी
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