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Thursday 13 August 2015

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

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