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Thursday 13 August 2015

ईश्वर

🔆ईश्वर

🔹ब्रह्म का स्वरुप द्विविध है-
1⃣ परब्रह्म- मायानुपहित, निरुपाधि, निर्विशेष और निर्गुण है।
2⃣ अपरब्रह्म- मायोपहित, सोपाधि, सविशेष तथा सगुण है और यही ईश्वर है।

🔸निष्क्रिय ब्रह्म जब माया के कारण सक्रिय होता है, तो वह विवर्त रूप जगत का कर्ता,पालयिता और संहर्ता हो जाता है।

🔸वह इस प्रपञ्च का साक्षी मात्र ही होता है, भोक्ता नहीं।

🔸यही मायोपहित ब्रह्म(ईश्वर) वर्णनीय,स्तवनीय और उपासनीय है-
✅ निर्गुणं ब्रह्म नामरूपगतैर्गुणै: सगुणमुपासनार्थमुपदिश्यते।

🔸ब्रह्म तो अवाङ्मनोगोचर है, जीव का सीधा सम्बन्ध ब्रह्म के ईश्वर रूप से है, जो स्वयं निर्लिप्त रहते हुए भी, जीव को कर्मों के लिए प्रेरित करता है-

✅ एष ह्येव साधुकर्म कारयति स यमेभ्यो लोकेभ्यो उन्मीषिते।

🔸 वही सत्य है और मिथ्या जगत का उपादान कारण  है तथा मायारहित शुद्ध चैतन्य होने से निमित्त कारण भी है।

🔸 सदानंद योगिन्द्र ने इसे लूता(मकड़ी) का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है, जो जाले की उत्पत्ति में शरीर से उपादान तथा चैतन्य से निमित्त कारण है-
✅ यथा लूता तंतुकार्य प्रति स्वप्रधानता निमित्तं स्वशरीरप्रधानतयोपादानञ्च भवति।

🔸 अपर ब्रह्म के लिए प्रयुक्त सर्वज्ञ,सर्ववित्,सर्वनियन्ता,अंतर्यामी आदि विशेषण वस्तुतः इसी ईश्वर के लिए है।

🔸यही ईश्वर समस्त जीवों का स्वामी और शासक है।

शुभ संध्या
जय श्री कृष्णा
🙏🙏

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