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गुरू पूर्णिमा का महत्त्व

  किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥ गुरू पूर्णिमा पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण आभ...

Sunday 25 October 2015

आर्य

🚩आर्य🚩
आर्य का शाब्दिक अर्थ होता है- सम्माननीय,आदरणीय या उत्तम व्यक्ति, अमरकोश में इसका अर्थ कुलीन,सभ्य,साधु आदि अर्थों में किया गया है-
"महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः" 7/13

सायण इसका अर्थ विज्ञ स्तोता, यज्ञ का अनुष्ठाता, आदरणीय व उत्तमवर्ण करते है।

वस्तुतः नैतिक रूप से प्रकृत आचरण करने वाला आर्य कहा जाता है-
कर्तव्यमाचनरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्।
तिष्ठति प्रकृताचारे स आर्य इति उच्यते।।

पुरातन भारतीय समाज में आदरणीय को आर्य शब्द से संबोधित करने की परम्परा रही है- पति को आर्यपुत्र, पितामह को आर्य तथा पितामही को आर्यपत्नी से संबोधित किया जाता था। रामायण में राम के आर्य व आर्यपुत्र शब्द प्राप्त होते है।

वैदिक भारतीय समाज में गुण,कर्म व स्वभाव को ध्यान में रख कर मनुष्य जाति को दो भागों में बांटा गया- आर्य व दस्यु, वेद भी इनका भेद जानने को कहते है-
“विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:”

वेद सत्य,अहिंसा,पवित्रता आदि सद्गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहते है तथा समग्र विश्व को इन जैसा बनाने की कामना करता है-
"कृण्वन्तो विश्वमार्यम्"

आर्यों का निवास स्थान-

सबसे पेचीदा प्रश्न आर्यों के मूल-स्थान पर विचार करना है, आर्यों के मूल स्थान के सम्बन्ध में अनेक सिद्धांत प्रचलित है, जिनको पूर्णतः निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता,बल्कि ये सिद्धांत वस्तुतः इस महान जाति का सम्बन्ध स्वयं से जोड़ने की कोशिश कर रहे है, कुछ प्रचलित सिद्धान्तों को देखते है-

1⃣ हेलेना ब्लावात्स्की- ने मानवता के वंशज को "रूट्रेसेस" श्रृंखला कहा है, जिसमें कुक 7 जातियाँ बताई है, इन्होंने आर्यों का परिगणन 5 वें नम्बर पर किया है तथा मूल स्थान "Atlantis" बताया है।

2⃣ आर्यों के उत्तरी(यूरोपीय) मूल का सिद्धान्त मुख्यतः जर्मन विद्वानों द्वारा प्रचलित किया गया है, जर्मन विद्वान् आर्यों को उच्चकुलीन व शासक वर्गीय मानते है, इस अवधारणा के मुख्य पोषक- अडॉल्फ हिटलर, मैक्समूलर,आरिसोफि,अल्फ्रेड रोसनबर्ग आदि रहे है।

3⃣ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आर्यों का मूल "Arctic व Tundra प्रदेश मुख्यतः उत्तरी ध्रुव मानते है।

इसके आलावा भी अनेक मत प्रचलित है जो आर्यों को बाहरी बताते है, परंतु इसका कोई ठोस ऐतिहासिक,शास्त्रीय व साहित्यिक प्रमाण नहीं दे पाते।

आर्य शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ऋग्वेद में प्राप्त होता है, जो यह बताने के लिए काफी है की आर्य खालिस भारतीय थे।

आर्य मूलतः भारतीय थे🇮🇳

1⃣ आर्यों को जम्बूद्वीप का निवासी माना जाता है, वायुपुराण में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का खाका खीचा गया है-
इदम् हैमवतं वर्षं भारतं नाम विश्रुतम्।
हेमकूटं परं तस्मात् नाम्ना किम्पुरुषं स्मृतम्॥
नैषधं हेमकूटात् तु हरिवर्षं तदुच्यते। हरिवर्षात् परञ्चैव मेरोश्च तदिलावृतम्॥
इलावृतात् परं नीलं रम्यकं नाम विश्रुतम्।
रम्यात् परं श्वेत विश्रुतं तत् हिरण्मयम्॥
हिरण्मयात् परं चापि शृंगवांस्तु कुरुः स्मृतम्। (वायुपुराण)

(१) हैमवत् वर्ष अर्थात् प्रसिद्ध भारतवर्ष,
(२) उसके बाद हेमकूट पर्वत है, जिसे किम्पुरुष देश
कहते हैं,
(३) हेमकूट के बाद नैषध है, जिसे हरिवर्ष कहते हैं,
(४) हरिवर्ष के बाद मेरु-पर्वत के उत्तर इलावृत है,
(५) इलावृत के बाद नील वर्ष है, जो ’रम्यक’ नामसे प्रसिद्ध है,
(६) रम्यक के उत्तर श्वेत-प्रदेश है, जिसे हिरण्मय कहते हैं और
(७) हिरण्मय के बाद शृंगवान् है, जो कुरु नाम से प्रख्यात है।

इस प्रकार जम्बूद्वीप के अन्तर्गत वायुपुराण के अनुसार सात देश हुये। सातों देशों में सबसे उत्तर कुरु
देश हुआ।

यह ’कुरु’ कहाँ है सो ब्रह्माण्डपुराण के निम्न-लिखित श्लोक से स्पष्ट हो जाता है-
उत्तरस्य समुद्रस्य समुद्रान्ते च दक्षिणे।
कुरवः तत्र तद्वर्षं पुण्यं सिद्ध-निषेवितम्॥

यह कुरु उत्तरी समुद्र के दक्षिण की ओर बसा हुआ है। यहाँ सिद्ध पुरुष रहते हैं, जिनका नाम ’कुरु’ है।

2⃣ महाभारत के सभापर्व में अर्जुन की विजय का वर्णन आता है जो तात्कालिक भारत की विशालता व विश्व पे भारत के प्रभाव का उद्घोष करता है-

स श्वेतपर्वतं वीरः समतिक्रम्य वीर्यवान्।
देशं किम्पुरुषावासं द्रुमपुत्रेण रक्षितम्॥
महता सन्निपातेन क्षत्रियान्तकरेण ह।
अजयत्पाण्डवश्रेष्ठः करे चैनं न्यवेशयत्॥
तं जित्वा हाटकं नाम देशं गुह्यकरक्षितम्।
पाकशासनीव व्यग्रः सहसैन्यः समासदत्॥
सरो मानसमासाद्य हाटकानभितः प्रभुः।
गन्धर्वरक्षितं देशमजयत् पाण्डवस्ततः॥
तत्र तित्तिरकिल्मिषान् मण्डूकाख्यान्
हयोत्तमान्। लेभे स करमत्यन्तं गन्धर्वनगरात्तदा॥
उत्तरं हरिवर्षन्तु स समासाद्य पाण्डवः। इयेष जेतुं तं
देशं पाकशासननन्दनः॥
तत एनं महावीर्या महाकाया महाबला ।
द्वारपालाः समासाद्य हृष्टा वचनमब्रुवन्॥
पार्थ नेदं त्वया शक्यं पुरं जेतुं कथञ्चन । उपावर्तस्व
कल्याण पर्याप्तमिदमच्युत॥
न चात्र किञ्चिज्जेतव्यमर्जुनात्र प्रदृश्यते ।
उत्तराः कुरवो ह्येते गात्रयुद्धं प्रवर्तते॥
प्रविष्टोऽपि हि कौन्तेय नेह द्रक्ष्यसि किञ्चन ।
नहि मानुषदेहेन शक्यमत्राभिवीक्षितुम्॥
... पार्थिवत्वं चिकीर्षामि धर्मराजस्य
धीमतः।..युधिष्ठिराय यत्किञ्चित् करपण्यं
प्रदीयताम्॥
ततो दिव्यानि वस्त्राणि दिव्यान्याभरणानि
च। क्षौमाजिनानि दिव्यानि तस्य ते प्रददुः करम्॥
-- (महाभारत, सभापर्व)

यहाँ एक यह बात जरूर बताने योग्य है की कट्टर जर्मन सैनिक द्वितीय विश्वयुद्ध के समय "भगवद्गीता" की एक प्रति हमेशा साथ रखते थे, उनका विश्वास था की श्रेष्ठ आर्य कृष्ण व महान आर्य सेनापति अर्जुन इनकी रक्षा करेंगे तथा बल देंगे...." इस से ये साबित हो जा सकता है की जर्मन स्वयं को आर्यों का मूल मानते थे लेकिन नायक हमारे थे.....वाह...

3⃣ ईरानी आर्यों को भारतियों से अलग मानना भी गलत है, वस्तुतः यह भारतीय आर्यों की संतान थे। इस्लाम के प्रभुत्व से पूर्व ईरान पर यहूदियों तथा पारसियों का वर्चस्व था यह दोनों जातियाँ अग्नि तथा प्रकृति-पूजक थी, बिलकुल आर्यों की तरह, इनके ग्रन्थ "जेंदावेस्ता" में बताई गई आर्य क्षेत्र की सीमा कुछ ऐसी है-
आर्यानेम वेजो - आर्याणांव्रजः
सुग्ध- सग्ध(समरकंद)
मौरु- मर्व
बख्घी- बल्ख
हेरायू- हेयर(हेरात)
हफ्तहिन्दु- सप्त सिन्धु

ये अलग होते तो सप्तसिन्धु प्रदेश से इनके सम्बन्ध की क्या जरुरत थी, इसे तो आर्यों का मूलस्थान माना जाता है।

4⃣ ब्रिटिश शासकों ने भारतीय जनमानस से सहयोग की प्राप्ति हेतु आर्यों का सम्बन्ध यूरोप से जोड़ा तथा आर्य आक्रमण सिद्धांत का बेबुनियाद प्रतिपादन किया।

5⃣ मनुस्मृति में साफ़-साफ़ आर्यावर्त की सीमा खिची गई है- उत्तर में हिमालय, दक्षिण में
विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जीतने देश है उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है।

6⃣ आर्यों का मूल "त्रिविष्टप" (तिब्बत) अर्थात हिमालय माना जाता है, यहाँ से आर्य भारत में गंगा-यमुना दोआब,पंजाब व सरस्वती नदी के क्षेत्र में फैले तथा वहा से रूस,यूरोप तथा ईरान आदि की तरफ अपने कदम बढ़ाये....वस्तुतः आधा विश्व आर्यों से जुड़ा हुआ है....आर्यों से उपकृत है

7⃣ ऋग्वेद की कई ऋचायें इसे प्रमाणित करती है-

सोदञ्चं सिन्धुमरिणात् महित्वा वज्रेणान उषसः संपिपेव।
अजवसो जविनीभिः विवृश्चन् सोमस्य ता मदइन्द्रश्चकार॥

इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्रवोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री।
अहन् अहि मन्वपस्ततर्द प्रवक्षणा अभिनत् पर्व्वतानाम्। ( १/३२/१)

नदं न भिन्नममुया शयानं मनो रुहाणा अतियन्ति आपः।
याः चित् वृत्रो महिना पर्यतिष्ठत् त्रासामहिः यत्सुतः शीर्बभूव॥ (१/३२/८)

इन ऋचाओं में उत्तर भारत की प्रकृति के दर्शन प्राप्त होते है....

💥 उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है की "आर्य वस्तुतः भारतीय थे ना कि बाहरी...."

🚩आर्यों और द्रविड़ों पे बात ना कर मैं इस नवीन शोध के साथ जाऊँगा और कहूँगा की "आर्य व द्रविड़ एक हैं"....लिंक प्रस्तुत है-

www.dw.com/hi/आर्यऔर द्रविड़-एक-ही-थे/a-4725274

प्रणाम...
🏻

✒मकरध्वज तिवारी

Thursday 13 August 2015

ईश्वर

🔆ईश्वर

🔹ब्रह्म का स्वरुप द्विविध है-
1⃣ परब्रह्म- मायानुपहित, निरुपाधि, निर्विशेष और निर्गुण है।
2⃣ अपरब्रह्म- मायोपहित, सोपाधि, सविशेष तथा सगुण है और यही ईश्वर है।

🔸निष्क्रिय ब्रह्म जब माया के कारण सक्रिय होता है, तो वह विवर्त रूप जगत का कर्ता,पालयिता और संहर्ता हो जाता है।

🔸वह इस प्रपञ्च का साक्षी मात्र ही होता है, भोक्ता नहीं।

🔸यही मायोपहित ब्रह्म(ईश्वर) वर्णनीय,स्तवनीय और उपासनीय है-
✅ निर्गुणं ब्रह्म नामरूपगतैर्गुणै: सगुणमुपासनार्थमुपदिश्यते।

🔸ब्रह्म तो अवाङ्मनोगोचर है, जीव का सीधा सम्बन्ध ब्रह्म के ईश्वर रूप से है, जो स्वयं निर्लिप्त रहते हुए भी, जीव को कर्मों के लिए प्रेरित करता है-

✅ एष ह्येव साधुकर्म कारयति स यमेभ्यो लोकेभ्यो उन्मीषिते।

🔸 वही सत्य है और मिथ्या जगत का उपादान कारण  है तथा मायारहित शुद्ध चैतन्य होने से निमित्त कारण भी है।

🔸 सदानंद योगिन्द्र ने इसे लूता(मकड़ी) का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है, जो जाले की उत्पत्ति में शरीर से उपादान तथा चैतन्य से निमित्त कारण है-
✅ यथा लूता तंतुकार्य प्रति स्वप्रधानता निमित्तं स्वशरीरप्रधानतयोपादानञ्च भवति।

🔸 अपर ब्रह्म के लिए प्रयुक्त सर्वज्ञ,सर्ववित्,सर्वनियन्ता,अंतर्यामी आदि विशेषण वस्तुतः इसी ईश्वर के लिए है।

🔸यही ईश्वर समस्त जीवों का स्वामी और शासक है।

शुभ संध्या
जय श्री कृष्णा
🙏🙏

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
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#मकरध्वज