Featured post

गुरू पूर्णिमा का महत्त्व

  किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥ गुरू पूर्णिमा पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण आभ...

Thursday 13 August 2015

ईश्वर

🔆ईश्वर

🔹ब्रह्म का स्वरुप द्विविध है-
1⃣ परब्रह्म- मायानुपहित, निरुपाधि, निर्विशेष और निर्गुण है।
2⃣ अपरब्रह्म- मायोपहित, सोपाधि, सविशेष तथा सगुण है और यही ईश्वर है।

🔸निष्क्रिय ब्रह्म जब माया के कारण सक्रिय होता है, तो वह विवर्त रूप जगत का कर्ता,पालयिता और संहर्ता हो जाता है।

🔸वह इस प्रपञ्च का साक्षी मात्र ही होता है, भोक्ता नहीं।

🔸यही मायोपहित ब्रह्म(ईश्वर) वर्णनीय,स्तवनीय और उपासनीय है-
✅ निर्गुणं ब्रह्म नामरूपगतैर्गुणै: सगुणमुपासनार्थमुपदिश्यते।

🔸ब्रह्म तो अवाङ्मनोगोचर है, जीव का सीधा सम्बन्ध ब्रह्म के ईश्वर रूप से है, जो स्वयं निर्लिप्त रहते हुए भी, जीव को कर्मों के लिए प्रेरित करता है-

✅ एष ह्येव साधुकर्म कारयति स यमेभ्यो लोकेभ्यो उन्मीषिते।

🔸 वही सत्य है और मिथ्या जगत का उपादान कारण  है तथा मायारहित शुद्ध चैतन्य होने से निमित्त कारण भी है।

🔸 सदानंद योगिन्द्र ने इसे लूता(मकड़ी) का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है, जो जाले की उत्पत्ति में शरीर से उपादान तथा चैतन्य से निमित्त कारण है-
✅ यथा लूता तंतुकार्य प्रति स्वप्रधानता निमित्तं स्वशरीरप्रधानतयोपादानञ्च भवति।

🔸 अपर ब्रह्म के लिए प्रयुक्त सर्वज्ञ,सर्ववित्,सर्वनियन्ता,अंतर्यामी आदि विशेषण वस्तुतः इसी ईश्वर के लिए है।

🔸यही ईश्वर समस्त जीवों का स्वामी और शासक है।

शुभ संध्या
जय श्री कृष्णा
🙏🙏

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

पुरातन भारतीय समाज में नारी का स्थान

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✔पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

शुभ सन्ध्या
जय राधा-माधव
🙏🙏

#मकरध्वज

Tuesday 11 August 2015

संस्कृत का पाश्चात्य ज्ञान व साहित्य पे प्रभाव

✅कृपया पढ़े अवश्य

सन 1800 के आस पास  यूरोप में सर्वाधिक चर्चित विषय था-
🔸मेघावी अंग्रेज अब ब्राह्मण होते जा रहे है।

ब्राह्मण(संस्कृत विद्वान)

ऐसे कुछ अंग्रेज थे जिन्होंने हमारे शास्त्रों, हमारे ज्ञान और देवभाषा को आत्मसात किया और अपने देश ले गए, उसे सिखा,सिखाया और अपनाया-
आयुर्वेद (Ayurveda Therapy) हो गया, योग(Yoga) हो गया,बौधायन प्रमेय(पाइथागोरस प्रमेय) हो गया, शून्य हमने दिया मंगल तक ये गए..

कालिदास से उनको प्रेरणा मिली, कणाद से परमाणु का सिद्धांत, महाभारत से बड़ा कोई काव्य नहीं,
ना वेद से पुराने ग्रन्थ...
ना गीता से बड़ा कोई नीति,रीति,राजनीति और प्रबंधन का शास्त्र है..
✅थोड़े से यूरोपियन आये हमारा ज्ञान ले गए उस से वो लाभान्वित हुए,उसेे समझा,जाना,अपनाया उस ज्ञान के खजाने का सदुपयोग किया और आज विकास कर रहे है, जहां रुपया डॉलर को टक्कर देता था वही आज अपने मूल्य को तरस रहा है-

ऐसे कुछ यूरोपियन्स की सूची जो भारतीय प्राच्य विद्या के विशेषज्ञ माने गए--

1⃣दुपरोन( Anquetil Duperron) ये फ्रांस के थे, इन्होंने दाराशिकोह द्वारा फ़ारसी में अनूदित उपनिषदों का लैटिन "औपनिखत(Oupnekhat) नामक अनुवाद किया।

2⃣जोहान फ़िकटे और पॉल दूसान ने वेदांत को सबसे बड़ा सच माना।

3⃣1875 में सर चार्ल्स विलकिन्स ने गीता का इंग्लिश अनुवाद किया।

🔸विलियम जोन्स पेशे से जज थे 1784 में इन्होंने एशियाटिक सोसाइटी बनाई,अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अनुवाद और ऋतुसंहार का संपादन किया,1786 में कहा कि-

™संस्कृत परम अद्भुत भाषा है। यह यूनानी से अधिक पूर्ण तथा लातिनी से अधिक सम्पन्न है।

🔸जोन्स ने ही सर्वप्रथम यह कहा था कि-

™गॉथिक और केल्टिक दोनों परिवार की भाषाओं का उद्गम स्तोत्र संस्कृत है।

✳जोन्स फ्रांज बाप,मेक्समूलर  और ग्रीम के आदर्श रहे है, ये तीनों संस्कृत व भारतीय संस्कृति के प्रमुख यूरोपियन जानकार माने जाते है।

🇮🇳संस्कृत के संपर्क से पूर्व यरोपियनों को फोनेटिक्स तथा उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान नहीं था, निरुक्त और अष्टाध्यायी के अध्ययन के बाद यूरोपियन विद्वानों ने इन विषयों पर शोध तथा लिखना प्रारम्भ किया।

4⃣1805 में कोलब्रुक ने वेदों का प्रामाणिक विवरण दिया दर्शन,व्याकरण,ज्योतिष और धर्म शास्त्र पर शोध किया।

5⃣यूजीन बनार्फ़ ये मेक्समूलर के गुरु थे।

6⃣मेक्समूलर ने 30 वर्षों तक सायण भाष्य पर शोध कर वेद भाष्य लिखा।

7⃣गेटे ने शाकुन्तलम् की प्रशंसा में कविता लिखी।

8⃣शीलर ने मेघदूत को आधार बना "मेरिया स्टुअर्ट" नामक कविता लिखी।

9⃣विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता "ओड ऑन इन्टीमेशन्स ऑफ़ इमोर्टिलिटी" आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धान्त पर आधारित है।

🔟 शैली की कविता एडोनायज( Adonai's) उपनिषदों पर आधारित है।

1⃣1⃣अमरीकी कवि एमसर्न ने "ब्रह्म" तथा जे.जी. व्हिटियर ने "सोम" नामक कविता लिखी है।

1⃣2⃣ आयरलैंड के कवि जार्ज रसेल ने (Over Soul, Krishna,The veils of maya,Om और Indian Song) जैसी शुद्ध भारतीय भाव की कविताये लिखी है।

1⃣3⃣ डब्लू.बी.येट्स ने भी शुद्ध भारतीय पृष्ठभूमि पर आधारित कवितायेँ लिखी है- Anushay and Vijay,The Indian upon God और The Indian to his love.

1⃣4⃣ स्टुअर्ट बेल्क़ि ने "त्रिमूर्ति" नामक कविता लिखी।

जब सम्पूर्ण पाश्चात्य ज्ञान,विज्ञान और साहित्य का आधार भारत और संस्कृत है तो भारत में संस्कृत को ये सम्मान क्यों नहीं...?

ये आंकड़े हमें ये बताने के लिए काफी है की भारतवर्ष और सनातन धर्म इतना गौरवशाली क्यों है...?

🚩हमें हमारे देश,सभ्यता,संस्कृति,संस्कृत और सनातन धर्म पर गर्व करना चाहिए, इसका संरक्षण,पोषण और विकास करना चाहिए।
जिस से भारत का विकास हो,वापस भारत अपने वैभव,गौरव को प्राप्त करे तथा विश्व का नेतृत्व करें।।

जयतु भारतम्🇮🇳
जयतु संस्कृतम्🚩

✅पोस्ट अच्छी लगे तो आगे जरूर बढ़ायें।

🙏🙏
मकरध्वज तिवारी

ब्रह्म

🔆 ब्रह्म

🔸बृह् या बृहि से व्युत्पन्न ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है- बृहणशील,विस्तृत या विशाल।
✔बृहत्त्वाद् बृंहणत्वाच्च तस्माद् ब्रह्मेति शाब्दितः।

🔸यह स्वयं वर्धनशील तत्त्व है और इसने "एकोSहं बहु स्याम्" की भावना से लोकों का वर्धन किया है।

🔸 यह अणु से भी सूक्ष्म और महतत्त्व से बड़ा है-
✔ अणोरणीयान् महतो महीयान्

🔸सूक्ष्म शरीरों का समष्टि रूप होने से इसे हिरण्यगर्भ और सूत्रात्मा भी कहा गया है।

✅ यद्यपि वैदिक साहित्य में मन्त्र,वाक्,यज्ञ,गायत्री,प्रणव,स्तुति आदि अनेक अर्थों में इसका प्रयोग यत्र-तत्र हुआ है, किन्तु बाद में इसका अर्थ सर्वव्यापी सत्ता में सिमित हो गया, जो निराकार,विशुद्ध सच्चिदानन्दरूप,जगदाधार,निर्विकार,अनश्वर,अपरिमेय,त्रिगुणातीत और देशकालातीत है।

🔸 अनादि और अनंत होने से यह अपरिभाषित है,मात्र अनुभूतिगम्य है।

🔸समस्त ब्रह्माण्ड में सर्वज्ञ और सर्वान्तर्यामी मात्र यही है-
✔ यः सर्वज्ञ: सर्वविद् यस्य ज्ञानमयं तपः

🔸इस ब्रह्म की सिद्धि के लिए शब्द प्रमाण ही सर्वोपरि है, प्रत्यक्षानुमानादि-
✔ तस्मात् सिद्धम् ब्रह्मणः शास्त्रप्रमाणकत्वात्

🔸यह आत्मैक्य के कारण स्वयं सिद्ध है-
✔ सर्वस्यात्मभावात् ब्रह्मास्तित्त्वसिद्धि:

🔸शंकराचार्य ने ब्रह्म के स्वरूपलक्षण और तटस्थ लक्षण अथवा निर्विशेष और सविशेष दो भाव निर्दिष्ट किये है-

1⃣ तत्र स्वरूपमेव लक्षणं स्वरूपलक्षणं यत्सत्यादिकं ब्रह्म

2⃣ तटस्थलक्षणं तु यावल्लक्ष्यकालमनवस्थितत्त्वे सति तद्व्यावर्तकम तदेव

🔸इसी आधार पर ब्रह्म के निर्गुण और सगुण रूपों की चर्चा हुई। दोनों के पुष्टिकारक वचन उपनिषदों में है-

1⃣ अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथारसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तम् महत: परं ध्रुवं..।।
-कठ 3/15
2⃣ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो
विश्वतो बाहुरत विश्वतस्पात्।।
- श्वेता. 3/3

🔸 ब्रह्म के स्वरुप का बोध  'अयमात्मा ब्रह्म', 'सत्यं ज्ञानमनन्तम् ब्रह्म','विज्ञानमानन्दम् ब्रह्म' आदि श्रुतिवचनों से होता है।

🔸 शंकराचार्य ब्रह्म के स्वरुप का विवेचन करते हुए लिखते है-

✔ अतः परं ब्रह्म सदद्वितीयं विशुद्धविज्ञानघनं निरंजनम्।
प्रशांतमाद्यन्तविहीनमक्रियं निरंतरानन्दरसं स्वरूपम्।।

✅ वस्तुतः एक मात्र सत्य ब्रह्म ही है। जो विभूषित जगत और विषयी जीव दोनों ही रूपों में प्रतिभासित होता है। जगत ब्रह्म का प्रतिभासित होने वाला विवर्त है और जीव उस भ्रान्तिमय जगत की अंगभूत उपाधियों से विशिष्ट होकर प्रतिभासित होने वाला, स्वयं ब्रह्म ही है।

शुभ संध्या
मकरध्वज तिवारी
🙏🙏

माया

✳माया

1⃣ वैदिक और पौराणिक साहित्य तथा बौद्धदर्शन में प्राप्त माया शब्द का प्रयोग देवशक्ति,प्रवंचना,प्रपञ्च,इन्द्रजाल और अविद्या आदि अर्थों में हुआ हैं।

2⃣ आचार्य शंकर ने इसे अव्यक्ता, जगदुत्पादिका तथा त्रिगुणात्मक शक्ति बताया है-

✅ अव्यक्तनाम्नी परमेशशक्ति: अनाद्यविद्या त्रिगुणात्मिका परा।
कार्यानुमेया सुधियैव माया यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते।।

3⃣ माया ब्रह्म की ही शक्ति है। उससे युक्त होने पर सगुण होकर ईश्वर कहलाता है, जो इस संसार की सृष्टी करता है।

4⃣ ईश्वर की माया द्वारा निर्मित यह जगत असत् है, मिथ्या है, स्वप्नवत् है।

5⃣ ब्रह्म सत् है, पर माया ना सत् है, न असत्।

✅ सदसद्भ्यामनिर्वचनीयं त्रिगनात्मकं ज्ञानविरोधीभाव-रूपं यत्किंचिदिति।

6⃣ माया न तो सदा विद्यमान रहती है और न ही उसका नितांत अभाव होता है।

7⃣ इसकी विद्यमानता में रज्जु में सर्प की भांति आभास होता है और परमज्ञान के कारण उसका विनाश होता है तो, सब कुछ ब्रह्ममय हो जाता है।

8⃣ माया की दो शक्तियां है-
          ✔आवरण (तम स्वरुप)
           ✔विक्षेप (रज स्वरुप)

9⃣ शंकराचार्य विवेक चूड़ामणि में इसको बहुत ही सुन्दर तरीके से समझाते है-
✅कवलितदिननाथे दुर्दिने सांद्रमेघैव्यर्थयति हिमझंझावायुरुग्रो यथैतान्।
अविरततमसात्मन्यावृते मूढबुद्धिम्
क्षपयति बहुदुःखैस्तीव्रविक्षेपशक्ति:।।

अर्थात्
जैसे दुर्दिन में सूर्य के मेघाच्छादित होने पर हिम और झंझावातों से लोग कष्टित होते है, उसी प्रकार माया अपनी शक्तियों से ब्रह्म को आच्छादित कर संसार को भ्रांत कर देती है।

❇ ऐसी माया के बंधन में बंधा व्यक्ति अलौकिक शक्ति के साक्षात्कार का आनंद लेने में अक्षम है।

❇ इस  माया से पार पाने का साधन है मन को जितना।
✔मन को आप तब जीतोगे जब आप तन को अर्थात इन्द्रियों को जीतोगे।
✔मन को आप तब जीतोगे जब आप "मैं"को जितोगे।
✔मैं को जितने का एक मात्र रास्ता है कि- आप स्वयं को जानो।
✔ स्वयं को जान ने के लिए शास्त्रों को जानो,फिर कुछ जान ने लायक नहीं बचेगा।

जय शंकर
मकरध्वज तिवारी
🙏🙏