भारतीय दर्शन....
इसको मोटामोटी तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1.आस्तिक/वैदिक
2. नास्तिक/अवैदिक
1. ™नास्तिक दर्शन में प्रमुख है-
क. ™चार्वाक(लोकायत)
•यह भौतिकतावादी और जड़वादी दर्शन है।
•इसके आचार्य बृहस्पति और चार्वाक कहे गए है।
•यह प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते है।
•इनका परम लक्ष्य है-
®"यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्"
•यहाँ चैतन्य विशिष्ट देह ही आत्मा है-
©"चैतन्यविशिष्ट: कायः पुरुष:"
√इसका नाश ही मोक्ष है।
•ये चतुर्भुजों(पृथ्वी,जल,तेज,वायु) से सृष्टि मानते है।
•आकाश को तत्व नहीं मानते है-
®"पृथ्विव्यापस्तेजोवायुरिति तत्वानि।"
•इनके अनुसार जीव जल बुद्बुदवत है और मरण ही अपवर्ग है।
•पुरुषार्थ दो है-
√काम
√मोक्ष
•ये परलोक और पुनर्जन्म नहीं मानते है।
ख. ™बौद्ध
•इसके चार सम्प्रदाय है-
√वैभाषिक
√सौत्रान्तिक
√विज्ञानवादी(योगाचार)
√शून्यवादी(माध्यमिक)
•इसमें 4 आर्यसत्यों का प्रतिपादन किया गया है-
®सर्वदुःखम्(संसार दुखमय है)
©दुःखं मुख्यम्(दुःख का निदान)
®दुःखनिरोध(दुःख का नाश)
©दुःखनिरोधगामिनि प्रतिपत्(दुःख से पूर्णतः मुक्ति देने वाला मार्ग-निर्वाण)
•यही मोक्ष है, जहाँ तृष्णा और लालसा से हटकर पुनर्जन्म के दुःख से मुक्ति मिल जाती है।
ग. ™जैन दर्शन
•इसके दो मुख्य सम्प्रदाय है-
√श्वेताम्बर
√ दिगंबर
•यह खुद को जड़वादी और नास्तिक नहीं मानते है, क्योंकि यह भगवान् अर्हंत की पूजा करते है।
•अर्हंत को यह कर्ता,धर्ता,संहर्ता नहीं मानते।
•इनका ©अनेकान्तवाद या ®स्यादवाद एक मौलिक सिद्धान्त है, जो वस्तु के भिन्न रूपों को विविध रूपों से सत्य मानता है।
•इसमें 6 द्रव्य वर्णित है-
®धर्मास्तिकाय
®अधर्मास्तिकाय
®आकशास्तिकाय
©पुद्गलास्तिकाय
©कालास्तिकाय
©जीवास्तिकाय
•कर्मो से मुक्त हो,सम्यक दृष्टि प्राप्त कर, जीव मोक्ष को प्राप्त करता है,आवागमन से मुक्त हो जाता है।
•यही निर्वाण कहलाता है।
2. ™आस्तिक दर्शन
∆षड्दर्शन
•संख्या,योग,न्याय,वैशेषिक,पूर्वमीमांसा व उत्तरमीमांसा(वेदांत) इन आस्तिक दर्शनों को ही षड्दर्शन में परिगणित किया जाता है।
•कपिल,पतंजलि,गौतम,कणाद,जैमिनी व बादरायण क्रमशः इनके प्रवर्तक माने गए है।
क. ™न्याय
•इसको आन्वीक्षिकी भी कहते है।
•इसको तर्कशास्त्र या तर्कविद्या भी कहा जाता है।
•इसके प्रवर्तक महर्षि गौतम [अक्षपाद] है।
•इसमें 16 पदार्थ माने गए है-
√प्रमाण
√प्रमेय
√संशय
√प्रयोजन
√दृष्टान्त
√सिद्धान्त
√अवयव
√तर्क
√निर्णय
√वाद
√जल्प
√वितंडा
√हेत्वाभास
√छल
√जाति
√निग्रहस्थान
•तत्वज्ञान से निःश्रेयस की प्राप्ति होती है।
•यह प्रत्यक्ष,अनुमान,उपमान और शब्द यह 4 प्रमाण मानता है।
•प्रमाणों से ही अर्थ की परीक्षा होती है।
®"प्रमाणैरर्थपरिक्षणम् न्यायः"
•अनुमान को तत्वज्ञान का प्रमुख कारण कहा गया है,जो 3 प्रकार का होता है-
©पूर्ववत्
*बादलों को देख के बारिश का अनुमान
©शेषवत्
*नदी के पाट को देख वर्षा का अनुमान
©समान्यतोदृष्ट
*ऐंद्रिय ज्ञान से इन्द्रियों के भविष्य का अनुमान
•इस अनुमान के 5 अंग है-
™प्रतिज्ञा
√पर्वतो वह्निमान्
™हेतू
√धूमत्त्वाद्
™दृष्टान्त
√यत्र यत्र धुमस्तत्र तत्र वह्नि- महानस:
™उपनय
√तथा चायं पर्वतः
™निगमन
√तस्मादयं पर्वतो वह्निमान्
•तीन सनातन सत्य है-
√जीव,जगत और ईश्वर।
•तीन ही कारण है-
√समवायि, असमवायि और नैमित्तिक
• जगत की वास्तविक सत्ता में परमाणु को समवायिकरण और ईश्वर को निमित्त कारण कहा गया है।
•अंतिम लक्ष्य अपवर्ग या मोक्ष है जहाँ सुखात्मक और दुखात्मक वृत्तियाँ नष्ट हो जाती है और साम्यावस्था को प्राप्त हो जाता है।
∆प्रमुख आचार्य-
वात्स्यायन,उद्योतकर,वाचस्पति मिश्र,जयंत,उदयनाचार्य,जगदीश भट्टाचार्य व गदाधर भट्टाचार्य आदि।
क्रमशः.....
शुभ प्रभात...
#मकरध्वज
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