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Tuesday 7 July 2015

वेदों का रचनाकाल

हमारी सनातन परम्परा वेदों को अपौरुषेय अर्थात मानव के द्वारा की गई रचना स्वीकार नहीं करती है।

हमारे मत में वेद उस आदि,अनादि परमसत्ता का कृपा प्रसाद है जिसकी वजह से,यह चर-अचर जगत व्याप्त है।
फिर भी कुछ पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने इनके काल क्रम को निर्धारित करने का प्रयत्न किया है ।
आप सभी सनातन संस्कृति अनुरागियों के सामने मैं प्रमुख विद्वानों के विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ।
आशा है,आप इसे पसंद करेगे तथा अपने विचार रखेंगे...

भारतीय विचारकों के मत-
1. बाल गंगाधर तिलक-
आप ने अपनी दो पुस्तकों Orion(ओरायन) तथा Arctic-Home In Vedas
में वेदों का कालक्रम निर्थारित करने का यत्न किया है ।
क. ओरायन
इस पुस्तक में आपने ज्योतिषिय सिद्धान्तों को आधार मानकर,
वेदों का कालक्रम निर्धारित किया है,विभिन्न नक्षत्रों की वसंतसंक्रांति
के आधार पर वैदिक साहित्य को 4 भागों में बांटा है।
1. अदिति काल
        वसंत संक्रांति के पूर्णमासी नक्षत्र के समीप, 6000-4000 ई.पू.
भारतीय सभ्यता के उदय काल के समय वेदों की रचना।
2. मृगशिरा काल
         ऋक् के प्राचीन मन्त्रों के लिखे जाने का समय.ई.पू.  4000-3500।
3. कृतिका काल
       चारों वेदों के लिपिबद्ध संस्करण,तैत्तरीय आदि संहिताओं तथा
ब्राह्मणों का रचनाकाल, 3500-2500ई.पू.।
4. अंतिम काल
यह कालक्रम 1500-500 ई.पू. के मध्य माना जाता है।
इस समय सूत्रग्रंथो,दार्शनिक ग्रंथो की रचना हुई, भाष्य लिखे गए
तथा बुद्ध का उदय हुआ।
इस काल निर्धारण सिद्धान्त को  वसंतसंपात सिद्धान्त कहा जाता है।
ख.  Arctic-Home In Vedas में तिलक वेदों का
रचनाकाल 10000 ई.पू. मानते है।
™तिलक ब्राह्मणों का रचनाकाल 2500, संहिताओं का 4500
तथा वेदों का 4000-6000 ई.पू. निश्चित करते है।

2. अविनाशचंद्र दास-
इन्होंने अपने ग्रन्थ "ऋग्वेदिक इंडिया" में
"एका चेतत् सरस्वती नदिनाम्.." 7/95/2
मन्त्र का उदाहरण देते हुए वेदों का रचनाकाल 2500 ई.पू. माना है।

3. पंडित दीनानाथ शास्त्री-
इन्होंने अपनी पुस्तक "वेद काल निर्णय" में वेदों का रचनाकाल
तीन लाख वर्ष पूर्व माना है ।

4.डॉ.आर.जी.भंडारकर-
इन्होंने वेदों का रचनाकाल 600 ई.पू. माना है।

5. पंडित बालकृष्ण दीक्षित-
इनके मत में शतपथ ब्राह्मण का रचनाकाल
"एक द्वे त्रीणि चत्वारि वा अन्यानि नक्षत्राणि,
अथैता एव भूयिष्ठा,
यत् कृतिकास्तद् भूमानमेव एतदुपैति,
तस्मात् कृतिकास्वादधीत।
एता हवै प्राच्यां दिशो न च्वयन्ते,
सर्वाणि ह वा अन्यानि नक्षत्राणि प्राच्या: दिश:च्वयन्ते.."
(शतपथ 2।1।2)
के आधार पर 3000 ई.पू. ठहरता है व वेदों का
रचनाकाल 3500 ई.पू. ठहरता है।

पाश्चात्य विद्वानों के सिद्धान्त-
1.ए वेबर-
जर्मन विद्वान् वेबर ने अपनी पुस्तक "अ हिस्ट्री ऑफ इंडियन लिटरेचर"
में कहा है कि " वेदों का समय निश्चित नहीं किया जा सकता है,
वर्तमान प्रमाण हम लोगों को उस समय के उन्नत शिखर तक
पहुचानें में असमर्थ है।"

2. जैकोबी
ज्योतिषिय गणना के अनुसार, ये वेदों का रचनाकाल
2500 ई.पू. मानते है, इन्होंने कल्पसूत्र में पठित
'ध्रुव इव स्थिरा भव" का उद्धरण दिया है।

3.एम.विंटरनिट्ज़-
ज्योतिष,ब्राह्मण,अष्टाध्यायी,अशोक के शिलालेखों,
व संस्कृत भाषा के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर
इन्होंने वेदों का रचनाकाल 4500-6000 ई.पू. माना है।

4. मैक्समूलर
वेदों के कालक्रम निर्धारण का सर्वप्रथम प्रयास इन्होंने ही किया,
इनके अनुसार वेदों को उनका वर्तमान स्वरुप 4 चरणों में प्राप्त हुआ।
क. छंद काल- 200+1000 = 1200 ई.पू.
ख. मन्त्र काल- 200+800 = 1000 ई.पू.
ग. ब्राह्मण काल- 200+600 = 800 ई.पू.
घ. सूत्र काल- 200+400 = 600 ई.पू.
इन्होंने अपने इस मत का प्रतिपादन " अ हिस्ट्री ऑफ़
एन्सिएन्ट संस्कृत लिटरेचर" में किया है।
      ✅पुनः "ग्रिफिट लेक्चर" में इन्होंने कहा कि " वेदों की रचना का

समय निश्चित नहीं किया जा सकता है, वैदिक मन्त्र ईसा से 1000
या 1500 या 2000 वर्ष पहले रचे गए थे, ऐसा निश्चित तौर पर
नहीं कहा जा सकता है, वास्तव में पृथ्वी पर कोई ऐसी शक्ति
नहीं है जो वेदों का काल-निर्धारण कर सके।

इस प्रकार विभिन्न विद्वानों के मतों पर दृष्टिपात करने
के बाद ये कहा जा सकता है की
"मानव मति में वह शक्ति नहीं है जो वेदों का
काल-निर्धारण कर सके।

मकरध्वज तिवारी

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