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Tuesday 28 July 2015

रामचरितमानस में प्राप्त मन्त्र

रामायण की चोपाई के माध्यम से कुछ जीवन के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र दिए जा रहे है जिनके जाप से सत्-प्रतिशत सफलता मिलती है मेरा आप से अनुरोध है इन मंत्रो का जीवन मे प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्री राम और श्री बालाजी सरकार आप के जीवन को सुख मय बना देगे !!

रक्षा के लिए
      मामभिरक्षक रघुकुल नायक !
      घृत वर चाप रुचिर कर सायक !!

विपत्ति दूर करने के लिए
     राजिव नयन धरे धनु सायक !
     भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक !!

सहायता के लिए
      मोरे हित हरि सम नहि कोऊ !
      एहि अवसर सहाय सोई होऊ !!

सब काम बनाने के लिए
      वंदौ बाल रुप सोई रामू !!
     सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू !!

वश मे करने के लिए
     सुमिर पवन सुत पावन नामू !!
     अपने वश कर राखे राम !!

संकट से बचने के लिए
     दीन दयालु विरद संभारी !!
     हरहु नाथ मम संकट भारी !!

विघ्न विनाश के लिए
     सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही !!
     राम सुकृपा बिलोकहि जेहि !

रोग विनाश के लिए
     राम कृपा नाशहि सव रोगा !
     जो यहि भाँति बनहि संयोगा !!

ज्वार ताप दूर करने के लिए
     दैहिक दैविक भोतिक तापा !
     राम राज्य नहि काहुहि व्यापा !!

दुःख नाश के लिए
      राम भक्ति मणि उस बस जाके !
      दुःख लवलेस न सपनेहु ताके !

खोई चीज पाने के लिए
      गई बहोरि गरीब नेवाजू !
      सरल सबल साहिब रघुराजू !!

अनुराग बढाने के लिए
     सीता राम चरण रत मोरे !
     अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे !!

घर मे सुख लाने के लिए
     जै सकाम नर सुनहि जे गावहि !
     सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं !!

सुधार करने के लिए
     मोहि सुधारहि सोई सब भाँती !
     जासु कृपा नहि कृपा अघाती !!

विद्या पाने के लिए
     गुरू गृह पढन गए रघुराई !
    अल्प काल विधा सब आई !!

सरस्वती निवास के लिए
     जेहि पर कृपा करहि जन जानी !
     कवि उर अजिर नचावहि बानी !

निर्मल बुध्दि के लिए
      ताके युग पदं कमल मनाऊँ !!
      जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ !!

मोह नाश के लिए
      होय विवेक मोह भ्रम भागा !
      तब रघुनाथ चरण अनुरागा !!

प्रेम बढाने के लिए
      सब नर करहिं परस्पर प्रीती !
      चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती !!

प्रीती बढाने के लिए
      बैर न कर काह सन कोई !
      जासन बैर प्रीति कर सोई !!

सुख प्रप्ति के लिए
      अनुजन संयुत भोजन करही !
      देखि सकल जननी सुख भरहीं !!

भाई का प्रेम पाने के लिए
      सेवाहि सानुकूल सब भाई !
      राम चरण रति अति अधिकाई !!

बैर दूर करने के लिए
      बैर न कर काहू सन कोई !
      राम प्रताप विषमता खोई !!

मेल कराने के लिए
      गरल सुधा रिपु करही मिलाई !
      गोपद सिंधु अनल सितलाई !!

शत्रु नाश के लिए
     जाके सुमिरन ते रिपु नासा !
     नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा !!

रोजगार पाने के लिए
     विश्व भरण पोषण करि जोई !
     ताकर नाम भरत अस होई !!

इच्छा पूरी करने के लिए
     राम सदा सेवक रूचि राखी !
     वेद पुराण साधु सुर साखी !!

पाप विनाश के लिए
     पापी जाकर नाम सुमिरहीं !
     अति अपार भव भवसागर तरहीं !!

अल्प मृत्यु न होने के लिए
     अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा !
     सब सुन्दर सब निरूज शरीरा !!

दरिद्रता दूर के लिए
     नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना !
     नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना !!

प्रभु दर्शन पाने के लिए
     अतिशय प्रीति देख रघुवीरा !
     प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा !!

शोक दूर करने के लिए
     नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी !
     आए जन्म फल होहिं विशोकी !!

क्षमा माँगने के लिए
     अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता !
     क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता !!

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