जय श्री हरि..
पुराणों में सृष्टि विज्ञान...
[सर्ग,प्रतिसर्ग]
पौराणिक सृष्टि विज्ञान तथा संख्या सृष्टि सिद्धान्त दोनों एक दूसरे से सम्बंधित जरूर है, मगर आश्रित नहीं है।
विभिन्न पुराणों में "नवविधि(नवधा)" सृष्टि का वर्णन प्राप्त होता है-
क.पद्म पुराण
इसके सृष्टिखंड में तृतीय अध्याय तथा 76 से 81 अध्याय तक सृष्टि रचना की नवधा प्रक्रिया वर्णित है।
जो इस प्रकार है-
1.प्राकृत सर्ग- यह 3 है।
2. वैकृत सर्ग- यह 5 है।
3. प्राकृत-वैकृत सर्ग- यह एक है।
इस प्रकार
3+5+1 कुल 9 सर्ग हुए...
जिनपे पूरी सृष्टि प्रक्रिया आधारित है..
1.- ब्रह्मोत्पत्ति
2.- पंचतन्मात्राओं की उत्पत्ति
3.- इन्द्रियादि..
™इसको "वैकारिकी" भी कहा जाता है।
4.- प्रकृति,बुद्धि
©यह मुख्य सृष्टि कही जाती है।
5.- तिर्यग-योनि
6.- देवता
7.- मनुषी
8.- श्रुति(वेद मन्त्र)
®इसको अनुग्रह कहा जाता है।
9.- सनक-सनंदन,सनातन,सनत्कुमार
√इसको उभयात्मक/कौमार कहा जाता है।
ख. विष्णुपुराण
इसमें भी अग्नि तथा पद्म पुराण की प्रक्रिया को माना गया है।
इसमें द्वितीय सर्ग को "भूत सर्ग" कहा गया है।
इसमें निम्नानुसार सृष्टि प्रक्रिया वर्णित है-
1. संक्षिप्त सृष्टि वर्णन (द्वितीय अध्याय)
2. शक्ति,ब्रह्मा की आयु व काल विभाग (तृतीय अध्याय)
3. वाराह अवतार (चतुर्थ अध्याय)
4. सृष्टि विस्तार और अविद्या की सृष्टि (पंचम अध्याय)
ग. श्रीमद् भागवत महापुराण
भागवतजी के "तृतीय स्कंध" के दशम अध्याय में सृष्टि प्रक्रिया वर्णित है।
इसमें प्राकृत-वैकृत सर्ग को नहीं माना गया है परंतु "नवधा सृष्टि प्रक्रिया" का सिद्धान्त स्वीकार किया गया है...
जो इस प्रकार है-
1. प्राकृत सर्ग-
√महत्ततत्व
√ अहंकार
√भूतानि(तन्मात्राणि)
√इन्द्रियादि
√देव
√तम
2. वैकृत सर्ग
√वृक्ष
√तिर्यक
√मनुष्य
®इस प्रकार 6+3=9
घ. मनुस्मृति
मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में लोक व प्राण सृष्टि का वर्णन है।
विषयप्रतिपादन के लिये सृष्टि प्रक्रिया को सुविधानुसार चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है...
1.आदिसृष्टि
•दक्ष से पूर्व- पूर्ववर्तिनी (मानसी)
•दक्ष के अनन्तर- मैथुनी
2. लोक/भूत सृष्टि
सूर्य,चंद्र,पृथ्वी,वायु व आकाश इन पञ्चमण्डलों की सृष्टि।
3. प्राणि सृष्टि
असुर,सुर, पित्तर, मनुष्यादियों की सृष्टि
4. आध्यात्म/अनुग्रह सृष्टि
श्रुति,उपनिषद तथा शास्त्रों की सृष्टि।
जय श्री राम।।
#मकरध्वज
No comments:
Post a Comment