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Tuesday 28 July 2015

आरती

✳आरती

✅आरती शब्द का मूल है "आर्ति:" जिसका अर्थ है कष्ट।

✅आरती शब्द की व्युत्पत्ति आ+ऋ+क्तिन्  के योग से हुई, जिसका अर्थ है कष्ट निवारक।

✅इसके क्रमश: दो भाव बतलाये गए है-जो  ‘नीराजन’ और ‘आरती’ शब्द से व्यक्त किये गए हैं।

🔸नीराजन अर्थात- नि:शेषेण राजनं प्रकाशनम्- से तात्पर्य है विशिष्ट रूप  से, नि:शेष रूप से प्रकाशवान करना।

✔अनेक दीप बत्तियाँ जलाकर विग्रह के चारों ओर घुमाने का अभिप्राय यही है कि पूरा-का-पूरा विग्रह एड़ी से चोटी तक प्रकाशित हो उठे- चमक उठे, अंग-प्रत्यंग स्पष्ट रूप से उद्भासित हो जाय, जिसमें दर्शक या उपासक भलीभाँति देवता की रूप-छटा को निहार सके, हृदयंग्म कर सके।

✅दूसरा ‘आरती’ - यह संस्कृत शब्द "आर्ति:" का प्राकृत रूप है इसे अपभ्रंश तथा बाद में हिंदी में ज्यों का त्यों ले लिया गया इसका  अर्थ है- अरिष्ट ।

✔यह विशेषत: माधुर्य उपासना से संबंधित है, अर्थात प्रभू का प्रेम पूर्वक स्तवन।

🔸भगवान् के पूजन के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति हो जाती है।
 

प्रणाम..🙏🙏

मकरध्वज तिवारी

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