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Thursday 16 July 2015

संस्कृत व्याकरण का इतिहास-2

गतांक से आगे...

संस्कृत व्याकरण-
अभी तक हमने व्याकरण के प्रादुर्भाव से लेकर "मुनित्रयों" में प्रथम "पाणिनि" तक जाना... अब आगे.....

●कात्यायन
१. यह पाणिनि के साक्षात शिष्य माने जाते है ।
२. इन्होने अष्टाध्यायी के सूत्रों को आधार कर "वर्तिकों" की रचना की ।
३. महाभाष्यकार इनको दक्षिणात्त्य मानते है-
√प्रियतद्धिता दाक्षिणात्या
४. "कथासरित्सागर" में इनको कौशाम्बी निवासी तथा वास्तविक नाम "वररुचि" बताया गया है-
√ततः सः मर्त्यवपुष्पा पुष्पदंत: परिभ्रमन ।
   नाम्ना वररुचि: किञ्च कात्यायन इति श्रुतः ।।
५. समुद्रगुप्त ने "कृष्णचरित काव्य" में इनको "स्वर्गारोहण काव्य" कर्ता वररुचि व वैयाकरण कात्यायन बताया है ।
६.कालक्रम-
√युधिष्ठिर मीमांसक- २९००-३००० ई०पू०
√लोकमणि दहल- २००० ई०पू०
√सत्यव्रत शास्त्री-२३५० ई०पू०
√मैक्समूलर-३०० ई०पू०
√कीथ- २५० ई०पू०
७. इनकी रचना "वार्तिक" सम्प्रति स्वतंत्र रूप से अप्राप्त है परन्तु महाभाष्य में संरक्षित अवश्य है ।
८. वार्तिक-
√उक्तानुक्तादुरक्तचिंता वार्तिकम (राजशेखर)
√ उक्तानुक्तादुरक्तचिंता यत्र प्रवर्तते ।
    तं ग्रंथं वर्तिकं प्राहुवार्तिक्ज्ञा मनीषिण: ।।
                                       (पराशर पुराण)
९. वार्तिक वस्तुतः पाणिनीय सूत्रों की समिक्षा,परिष्कार व परिवर्धन है ।

●पतंजलि
१. इनका जन्म कश्मीर के गोनार्द जनपद में हुआ था ।
२. इनको "शेषनाग" का अवतार माना जाता है ।
३. वस्तुतः ये योग व आयुर्वेद के आचार्य थे ।
४. अपर नाम-
√गोणिकापुत्र
√नागनाथ
√अहिपति
√फणी
√शेष
√गोनार्दीय
६. इनका स्थितिकाल ई०पू० १५० माना जाता है ।
७.रचनाये-
√महाभाष्य [ पाणिनीय सूत्रों व कात्यायन के वर्तिकों का भाष्य ]
√योगसूत्र
√चरक परिष्कार
√महानंद काव्य
८. भाष्य लक्षण-
" सुत्रार्थो वर्ण्यते यत्र पदै:सूत्रानुसारिभि: ।
   स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदु: ।।
९. पाणिनीय व्याकरण के त्रिमुनियों में इनको सर्वोच्च स्थान प्राप्त है " यथोत्तरम् मुनीनां प्रमाण्यम™ उक्ति इनको पाणिनि व कात्यायन से अधिक प्रमाणिक घोषित करती है ।
१०. महाभाष्यं वा पठनीयं महाराज्यं वा पालनीयं इति।
भाषा सरला, सरसा प्रान्जला च ।अनुपमा हि तत्र संवाद शैली।

क्रमशः.....
#मकरध्वज

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