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गुरू पूर्णिमा का महत्त्व

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Tuesday, 21 July 2015

रामचरितमानस अमृत

गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज प्रभू श्री राम के चरित्र स्तवन की महिमा बताते हुए कहते है-

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के।
मिटहिअं दोष दुख भव रजनी के ।
सूझहि राम चरित् मनि मानिक ।
गुपुत प्रगट जहँ जेहि खानिक।।

अर्थात

प्रभू श्री राम को जब भक्त(साधक) प्रेम तथा भक्ति पूर्वक अपने हृदय में स्थापित करता है तो वो,
उस साधक के हृदय में स्थित उस निर्मल नेत्र को खोल देते है, जो संसार की दुःखात्मक स्थिति को देखने के कारण बंद हो गई थी..

तथा

श्री राम की भक्ति के प्रकाश से, यह संसार रूपी घनघोर काली रात भी प्रकाशवान हो उठती है, तब उसके आलोक में उस भक्त (साधक) को

श्री राम चरित्र रूपी मणि तथा माणिक्य, जहाँ जिस खान में हो, चाहे गुप्त हो या प्रकट हो स्वतः ही दिखाई देने लगते है।

इसका तात्पर्य ये है की-

प्रभू श्री राम की भक्ति रूपी प्रकश से भक्त के हृदय में भक्ति का आलोक होता है, जिस से वो प्रभू श्री राम के सत्चरित्र को जान ने वाले सद्गुरु के पास स्वयं पहुँच जाता है चाहे वो गुरु कही भी हो...

गुरु चरणों की प्राप्ति के बाद उनसे श्री राम चरित्र का ज्ञान पाने के बाद उसके हृदय से इस संसार की समस्त व्याधियां तिरोहित हो जाती है, तथा वो परमानंद को प्राप्त करता है।

ऐसी है भक्तवत्सल प्रभू श्री राम की महिमा...
जो इनकी शरण में निष्ठा,प्रेम,भक्ति और समर्पण से जाता है वो इनका और ये उसके हो जाते है...

बस लगन सच्ची होनी चाहिये...

जय श्री राम...🙏🙏

#मकरध्वजतिवारी

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